जीवन में चार का महत्व :
जीवन में चार का महत्व :-
निंद्रा चार जनों को नहीं आती –१]जिसके पास बल और सहायक न हों फिर भी बलवान के संग वैर करे; २]जिसका द्रव्य चला जाए ;३]जो काम के वशीभूत हो और ४]जो चोर हो।
अर्थात् जब हम बिना किसी ताकत के बलवान के संग वैर करते हैं तो डरते रहते हैं कि कब वो हमें नुक्सान पहुंचा दे और इस डर में हमें नींद भी नहीं आती। इसी प्रकार धन के जाने के डर से भी हम सो नहीं सकते।कहोर भी डर के मारे कि कहीं पकड़ा न जाए ,जागता रहता है।
चार युक्तियों से शत्रु,मित्र और उदासीन को अपना बना लेना-१]रिश्वत ;२]फ़ितूर ;३]युद्ध और ४]सलाह।
अर्थात् जब हम किसी को रिश्वत देते हैं तो वो हमारे काम करने को तैयार हो जाता है ।उसी प्रकार हम किसी को अपने अधीन कर के भी अपने काम करा सकते हैं।किसी के दिमाग में कोई बात डाल कर या उसे सलाह दे कर भी जो उसके काम आये हम उसे अपना बना सकते हैं।
इन चारों के संग सलाह न करें –१ ]मूर्ख ; २]चुगलीखोर ;३]आलसी और ४]खुशामदी व्यक्ति।
अर्थात् जब हम किसी मुर्ख से सलाह लेंगे तो वो अपनी मूर्खता में हमें सही सलाह नहीं दे सकता ।चुगलीखोर सलाह तो क्या देगा ,दूसरों की चुगली ही करता रहेगा।आलसी व्यक्ति ऐसी ही सलाह दे सकता है जो किसी काम की नहीं होगी।खुशामदी व्यक्ति हमें कभी सही सलाह नहीं दे सकता ,क्योंकि वो कभी ऐसी बात नहीं करेगा जो सही हो ,लेकिन हमें अच्छी न लगती हो ।कहने का अर्थ ये है कि इन चारों से सलाह लेने पर हमें सही सलाह नहीं मिल सकती ,इसलिए इन से सलाह नहीं लेनी चाहिए।
ये चारों अपने घर में रखने लायक हैं – १]अपनी स्वजाति का बुड्ढा ; २]कुलवान ३]गरीब मित्र और ४]जिसके संतान नहीं हो सो बहिन।
अर्थात् जब हम अपनी स्वजाति के बुजुर्ग को अपने घर में रखते हैं तो वो हमें अच्छी-अच्छी बातें और सलाह ही देगा जो हमारे काम आएँगी।इसी प्रकार कुलवान और गरीब मित्र भी हमारी मदद ही करेंगे और गरीब मित्र तो हमारी मदद को जो हमने उसे अपने घर में रख कर की थी कभी भी नहीं भूलेगा और हर पल हमारी भलाई की ही सोचेगा।बहिन कभी भी अपने भाई का बुरा नहीं सोच सकती।
ये चार तुरंत ही फल देने वाले हैं – १]ईश्वर की विचारी हुई बात ; २]तपस्वी के वचन ;३]विद्यावान होके नम्रता ;४]पाप के कर्म।
अर्थात् हम सब भगवान् के बालक हैं।ईश्वर जो भी कहते हैं ,तपस्वी जन जो भी कहते हैं वो सम्पूर्ण जगत की भलाई के लिए ही होती है।जब हम इन की बात मानते हैं और अपने जीवन में उतारते हैं तो तुरंत सफलता की सीढ़ियों को चढ़ते हैं।जो लोग हमेशा पाप के कर्म करते हैं और सोचते हैं कि हम इससे बच जायेंगे वो भूल करते हैं ।पाप का फल तो तुरंत ही मिलता है ,चाहे वो प्रत्यक्ष न दिखाई दे।
ये चार कर्म जो करता है उसे देवता भी मान देते हैं – १]दान ; २]होम ; ३]कुलदेवता का पूजन और ४]शुभकर्म ,प्रायश्चित आदि नित्य कर्म।
अर्थात् अपने कुलदेवता का पूजन करना ,हवन आदि करना ,पुन्य देने वाले काम करना और दान आदि करना ,इन सब से मनुष्य की आत्मा पवित्र होती है।हमारा मन शांत होता है।हमें अन्यों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।हम अपने शुभ कर्मों से देवताओं से भी ऊंचे हो जाते हैं और वे भी हमें सम्मान देने लगते हैं।
इन चार को करने से लक्ष्मी आप प्राप्त होती है – १]दुर्बल की अवज्ञा न करके ;२]सामग्री सिद्ध करके शत्रु पे जा कर ; ३]बलवान के संग बैर न कर केऔर ४]अपना अच्छा दिन देख कर कार्य सिद्धि के लिए जाकर।
अर्थात् जब हम बलवान के साथ वैर नहीं करते या अपने शत्रुओं के सामने पूरी ताकत के साथ जाते हैं तो वो भी हमारी मदद को तैयार हो जाते हैं।दुर्बल कभी भी कोई ऐसी सलाह नहीं देता जो हमें नुक्सान पहुंचाए ,इसलिए उसकी सलाह मानने में कोई हर्ज नहीं है।
इन चार लक्षणों वाला पुरूष शोभा के लायक है – १]जो दुसरे की अनदेखी नहीं करता ; २]जो सबके लिए हृदय में दया की भावना रखता हो ; ३]जो स्वयं दुर्बल हो कर बलशाली की बराबरी नहीं करता और ४] जो खुद को कठोर वचन बोले जाने पर भी सहन कर लेता है।
अर्थात् जब कोई हमारे पास आता है या मदाद मांगता है तो हमें ऐसा नहीं करना चाहिए ,क्योंकि यदि अहं ऐसा करेंगे तो कल को वो भी हमारे साथ ऐसा ही कर सकता है ।वहीँ जब हम दूसरों की सारी बातें सुनते हैं तो उसकी श्रद्धा के पात्र हो जाते हैं।इसी प्रकार दूसरों के लिए दया का भाव रखने वाला ,खुद कठोर वचन न बोल कर दूसरों के कठोर वचनों को सहने वाला भी सम्मान का पात्र है।
ऐसा व्यक्ति अनर्थ को कभी प्राप्त नहीं करता – १]जो अपने आश्रित की खबर पूछता है ; २]जो थोडा आहार करता है ; ३]जो बहुत काम करता है और ४]जो शत्रु भी अगर आ कर याचना करता है ,तो उसको देता है।
अर्थात् जब हम अपने आश्रितों का ख़याल रखते हैं ,अपने शत्रुओं को भी जरूरत पड़ने पर देते हैं ,तो हमारे शत्रु भी हमारे मित्र हो जाते हैं और हमारे आश्रित और ऐसे शत्रु वक्त पड़ने पर हमारे काम आते हैं और हमारा अनर्थ होने से हमें बचा लेते हैं।जब हम मन लगा कर काम करते हैं तो हमेशा सफलता को ही प्राप्त करेंगे इसमें कोई संदेह नहीं है और हमारे अनर्थ का तो सवाल ही नहीं उठेगा।
ऐसे व्यक्ति समाज में उत्तम खान के हीरे के समान शोभा पाते हैं – १]जो सर्व प्राणी के कल्याण करने का उद्योग करता है ; २]जो सदा सत्य और मृदु भाषण करता है ; ३]जो दूसरे का मान रखता है और ४]जिसका मन शुद्ध है।
अर्थात् उत्तम विचार रखने से ,सद्गुणों को अपनाने से ,दूसरों की हर समय मदद करने से ,दूसरों का मान रखने से ,हमेशा सुखद बोलने से हम समाज के अन्दर प्रेम के पात्र बन जाते हैं और हर कोई हमें चाहने लग जाता है।जिस प्रकार उत्तम खान का हीरा अपनी चमक बिखेरता है उसी प्रकार हमारी आभा भी पूरे समाज में फ़ैल जाती है।
Leave a Reply