ध्यान – हमारे भीतर शांतिपूर्ण वापसी के लिए:
ध्यान – हमारे भीतर शांतिपूर्ण वापसी के लिए:-
हमारा वास्तविक शत्रु बाहर नहीं हमारे भीतर ही है ,अत: ध्यान करें क्यूंकि इससे हमें हमारे भीतर शांतिपूर्ण वापसी के लिए एक जगह मिल जायेगी।
“हमेशा ,सोच ,वचन और कर्म से ,पूर्ण सामंजस्य का उद्देश्य रखें।हमेशा अपने विचारों को शुद्ध करने का उद्देश्य रखें और सब कुछ ठीक हो जाएगा”,महात्मा गाँधी ने कहा था।महाभारत संभवतः प्राचीनतम और सबसे सम्माननीय पौराणिक गाथा है।महाभारत में अर्जुन अपने स्वयं के सगे-सम्बन्धियों को शत्रुपक्ष में देख कर खुद को अजीब विरोधाभास में पा रहा था।भगवान् श्रीकृष्ण नें क्षणों के भीतर उसकी मनोदशा पढ़ और समझ ली और इस प्रकार सबसे पवित्र शास्त्र का जन्म हुआ जिसका नाम है –भगवत गीता।भगवान् श्रीकृष्ण ने पार्थ अर्जुन को एक सार्वभौमिक उपदेश दिया और उसे सभी प्रकार की ममता,आसक्ति और बन्धनों से ऊपर उठ कर स्थिर रहना सिखाया।
यहां तक कि आजकल के इस युग में भी ,अपने पड़ोसियों को समझने के लिए ,हमें उनके नज़रिये से सोचना होगा।समझ,चाहे वो पारिवारिक मोर्चे पर हो या पेशेवर मोर्चे पर, एक शांतिपूर्ण और संतुष्ट जीवन जीने में, महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।विभाजनकारी ताकतें ,हमेशा से क्रियाशील रही हैं लेकिन प्रबुद्ध जाति या समुदाय कभी भी इस तरह के दांव-पेंच पर प्रतिक्रिया नहीं करता।
हम ऐसे समय में रह रहे हैं जहाँ धारणाओं को आकार दिया जाता है ,थोपा जाता है या प्रभावित किया जाता है ताकि हर प्रकार का विभाजन तैयार किया जा सके।लेकिन एक पूरी नस्ल को,उस क्रूर नरसंहार और हिंसा के लिए जो मानवता पर फैलाई गयी हैं ,के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता।
जब दुष्ट और विभाजनकारी ताकतें , शांति और प्रेम के मानदंडों को ,अशांत कर रही हों,तब धर्मों और समाजों को ,शांति और प्रेम का एक ऐसा सन्देश अपने अनुयायियों और सदस्यों को समझाना चाहिए,जिससे एक ऐसे महानगरीय समाज का निर्माण हो जहाँ चरम धार्मिक सद्भाव और मानवतावाद जीत सकें।
तेनजिन धोनडेन के शब्दों में “आपका शत्रु बाहर कहीं नहीं है ,वो आपके भीतर ही है।हम धर्म को कैसे देखते हैं वो स्वयं में सचाई,शान्ति और सौहार्द है।“
ध्यान करें, क्यूंकि इससे हमें,हमारे भीतर शांतिपूर्ण वापसी के लिए एक जगह मिल जायेगी और भीतरी शत्रु को परास्त करने में सफलता प्राप्त होगीध्यान की परंपरा,आधुनिक युग के लोगों के लिए अत्यंत कीमती है।लोग आजकल अपने जीवन में उथल-पुथल के दलदल का सामना कर रहे हैं ,और संसार हमेशा से ही समस्याओं से दो-चार होता रहता है।जब लोग कठिनाईयों का सामना करते हैं तो उन में से कई आशाहीन हो जाते हैं और अपने दुखों को भुलाने के लिए शराब और ड्रग्स की तरफ मुड़ जाते हैं।इससे वो खुद के लिए ,परिवार के लिए और समाज के लिए और ज्यादा समस्याओं का निर्माण कर लेते हैं।
जीवन में समस्याओं का कोई अंत नहीं होता और अधिकाँश समस्याएं भीतरी होती हैं जैसे दुःख ,नकारात्मकता ,क्रोध,द्वेष आदि। हालांकि ध्यान हमारे जीवन से समस्याओं को दूर नहीं करता,पर ये हमें उस ऊंचाई पर ले जाता है जहाँ हमें उन समस्याओं का प्रभाव नहीं महसूस होता।जब हम ध्यान करते हैं तो हम आनंद,ख़ुशी और प्यार के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और हम कोई तनाव महसूस नहीं करते।अर्थात् हम इन भीतरी शत्रुओं को परास्त कर एक शांतिमय क्षेत्र का निर्माण करते हैं।
बिना किसी लकीर को छुए ,उसे छोटा करने का केवल एक तरीका है कि उसके समानांतर ही एक बड़ी लकीर खींच दी जाए।इसी प्रकार ध्यान भी जीवन की समस्याओं से निबटने का समान तरीका प्रदान करता है।ये समस्याओं को समाप्त नहीं करता बल्कि उनसे निबटने के लिए हमें एक नया दृष्टिकोण देता है।ध्यान में हम, हमारे भीतर शांतिपूर्ण वापसी के लिए एक जगह खोज लेते हैं और उस दिव्य शक्ति परमात्मा के संपर्क में आते हैं।ये दिव्य शक्ति अपने आप को प्यार की रोशनी के रूप में प्रकट करती है और जब हम अपने भीतर प्रकाशित इस रौशनी के संपर्क में आते हैं ,हमें असीम शांति और आनंद का अनुभव होता है।इस प्रकार हमारे भीतर के सभी शत्रु पराजित हो जाते हैं और जब हम ध्यान से बाहर आते हैं तो हम इस शांति और आनंद को अपने साथ ले जा सकते हैं और विश्व में फैला सकते हैं।
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